



बालोद
गांव में अष्टमी और दशहरे में अजब-गजब रीति-रिवाजों के साथ संपन्न होता है यह त्यौहार। ऐसा ही एक खबर सोशल मीडिया में सामने आया है जो जिला मुख्यालय से तकरीबन 30 किलोमीटर दूर ग्राम डेंगरापार (पाड़े) का बताया जा रहा है यहां पर अष्टमी हवन पर एक परिवार में आयोजन के दौरान पूजा करने वाले पंडा हवन कुंड में कूदते हैं और उन्हें बचाने के लिए हवन कुंड आग के ऊपर करवट बदलते हुए ग्रामीण उपस्थित रहते हैं गांव के गौकरण देवदास का कहना है कि यह हमारे गांव की परंपरा है जिसे जग रचाई परंपरा के नाम से जाना जाता है। हमारे गांव में हवन बिना पंडित के होता है कोई मंत्र उच्चारण नहीं होता, बल्कि 9 दिनों तक पूजा करने वाले पंडा ही इस तरह से हवन कुंड जलाकर जलती आग में खुद को आस्था वश रोकने का प्रयास करते हैं उन्हें जलने से बचाते हुए अग्नि के ऊपर करवट बदलाते हुए अन्य ग्रामीण उन्हें रोकते हैं और फिर अन्य विधाओं के साथ उन्हें शांत कराया जाता है ऐसा करना खतरनाक तो है लेकिन अब तक किसी के साथ कोई घटना नहीं हुई है अग्नि कुंड में कूदने वाले लोगों को बचाने के लिए दक्ष ग्रामीणों की पर्याप्त संख्या यहां तैनात रहती है।